भारतीय विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष ने चोट के बावजूद वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल और फाइनल में खेलते हुए टीम इंडिया की ऐतिहासिक जीत में अहम भूमिका निभाई।
Richa Ghosh: चोट के बावजूद सेमीफाइनल और फाइनल में भारत के लिए मैदान पर उतरी थीं ऋचा घोष, जीत में निभाया था अहम योगदान
Richa Ghosh played with an injury: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक विश्व कप जीत में विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष का योगदान बेहद खास रहा। महज 22 साल की उम्र में ऋचा ने न सिर्फ अपनी पावर हिटिंग से सबका दिल जीत लिया, बल्कि दर्द को नजरअंदाज करते हुए टीम के लिए सब कुछ झोंक दिया। सेमीफाइनल और फाइनल दोनों ही मुकाबलों में ऋचा फ्रैक्चर वाली उंगली के साथ मैदान पर उतरीं, लेकिन फिर भी उनके शॉट्स ने मैच का रुख मोड़ दिया।
इस टूर्नामेंट में ऋचा घोष ने कुल 12 छक्के लगाए, जो किसी भी महिला खिलाड़ी द्वारा एक विश्व कप संस्करण में सबसे ज्यादा हैं। उन्होंने न केवल तेज़ी से रन बनाए, बल्कि कठिन परिस्थितियों में टीम को स्थिरता भी दी। सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 16 गेंदों में 26 रन और फाइनल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 24 गेंदों में 34 रन, दोनों पारियां भारत की खिताबी राह में निर्णायक साबित हुईं।
दर्द के बावजूद मैदान पर डटी रही Richa Ghosh
ऋचा (Richa Ghosh) की चोट का खुलासा उनके बचपन के कोच शिब शंकर पॉल ने किया। उन्होंने बताया, “सेमीफाइनल से पहले ऋचा की बाईं हाथ की मध्य उंगली में हेयरलाइन फ्रैक्चर था। इसके बावजूद उसने न सिर्फ बल्लेबाजी की, बल्कि विकेटकीपिंग भी की। यह उसकी मानसिक ताकत और टीम के प्रति समर्पण को दिखाता है।” सेमीफाइनल में ऋचा ने 339 रनों के विशाल लक्ष्य के पीछा करते हुए टीम को संभाला, वहीं फाइनल में उनकी तेज़ पारी ने भारत को 298 तक पहुंचाया जो आखिरकार निर्णायक साबित हुआ।

टीम का भरोसा ही हमारी असली ताकत थी
ऋचा (Richa Ghosh) ने मैच के बाद कहा कि टीम की सफलता का राज “भरोसा और स्पष्ट भूमिकाएं” थीं। उन्होंने बताया कि हेड कोच अमोल मजूमदार ने हर खिलाड़ी को उसकी भूमिका स्पष्ट की थी — “मेरा काम था आखिरी ओवरों में रन गति बढ़ाना और फिनिशर की भूमिका निभाना। अमोल सर ने कहा था — ‘घबराना नहीं, अपने शॉट्स खेलो।’ यही भरोसा मुझे हर मैच में आगे बढ़ाता रहा।”

विश्वकप के लिए थी तैयार
ऋचा (Richa Ghosh) ने कहा कि विश्व कप से पहले उन्होंने अपने खेल पर काफी काम किया। “पहले मैं जल्दी-जल्दी रन बनाने की कोशिश में विकेट गंवा देती थी। अब मैंने सीखा कि स्ट्राइक रोटेट करते हुए सही मौके पर बड़े शॉट लगाना कितना ज़रूरी है।” आठ पारियों में 235 रन और 133.52 की स्ट्राइक रेट की मदद से ऋचा टूर्नामेंट की टॉप-5 बल्लेबाजों में शामिल रहीं।
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