चंद्रकांत पंडित - क्रिकेट के मैदान के किंगमेकर की कहानी

जहां चंद्रकांत पंडित 23 साल पहले टूटे दिल और सपनों के साथ खुद को सँभालने में नाकाम थे लेकिन दो दशक और तीन साल के इंतज़ार के बाद मैदान वही था, मौक़ा वही था, आँख

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By Rohit Juglan
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चंद्रकांत पंडित - क्रिकेट के मैदान के किंगमेकर की कहानी

भारतीय राजनीति में एक शब्द बड़ा प्रचलित है 'किंगमेकर', क्या हुआ कि आप अपने वक्त में किंग नहीं बन पाए, क्या हुआ कि आपको ताज नहीं पहनाया गया, क्या हुआ जो आपके सपने बतौर खिलाड़ी और बतौर कप्तान टूट गए और क्या हुआ जो उन सपनों को टूटे 23 साल हो चुके हैं, इन सब से इतर किंगमेकर की भूमिका तो आप निभा ही सकते हैं और कभी भी निभा सकते हैं, बस इसी वाक्य को अपने नाम के साथ जोड़ लिया है मध्य प्रदेश के कोच चंद्रकांत पंडित ने, आज हम अपने इस खास लेख में इस किंगमेकर के पीछे की कहानी के बारे में ही बात करेंगे. 

बतौर कोच मुंबई को तीन और विदर्भ को दो बार चैंपियन बनाया

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भारतीय क्रिकेट में चंद्रकांत पंडित ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है सोशल मीडिया भरा पड़ा है चंद्रकांत पंडित के क़िस्सों, उनकी उपलब्धियों से क्रिकेट की दुनिया उन्हें अलग-अलग संज्ञाएँ दे रही है और वो सब चंद्रकांत पंडित के नाम से के साथ सटीक बैठ भी रही हैं फिर चाहे सचिन तेंदुलकर की सराहना से भरा ट्वीट हो या फिर दिनेश कार्तिक का सर एलक्श फ़र्गुसन कह देने वाला ट्वीट.

अब इन सब बातों के बीच सवाल ये कि चंद्रकांत पंडित ने मध्य प्रदेश की टीम को चैंपियन बनाया है, लेकिन उनके नाम का गुणगान गौथम सिटी के बैटमैन की तरह क्यों हो रहा इसे जानने के लिये आपको कुछ साल पहले जाना पड़ेगा.

 चंद्रकांत पंडित ने बतौर कोच मुंबई को तीन और विदर्भ को दो बार चैंपियन बनाया है, उन्हें दो साल पहले मध्य प्रदेश का मुख्य कोच बनाया गया था, लेकिन उनके नाम के सामने आने के साथ ही कई तरफ़ से उनकी आलोचना भी हुई उन्हें ज़िद्दी कहा गया, टीम को सिर्फ़ खुद की चलाने वाला कहा गया लेकिन वो बीती टीमों के साथ अपनी शर्तों पर नतीजे दे चुके थे तो उनके साथ ही आगे बढ़ने का फ़ैसला लिया गया.

 

 

 

टीम शीट के तमाम नामों पर लगाया कट का निशान

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पंडित ने सबसे पहले हर उम्र की टीम की सेलेक्शन कमेटी के साथ खुद को जोड़ा ताकी वो मध्य प्रदेश में क्रिकेट का वर्तमान और भविष्य जान सकें, ये किसी से छिपा नहीं है कि मध्य प्रदेश क्रिकेट में हमेशा से भ्रष्टाचार और राजनीति का दबदबा रहा है.

मेरिट पर सेलेक्शन यहाँ दूर की कौड़ी थी, राजनीति के चलते टीम में सेलेक्शन होते थे, कभी भी खेल के हिसाब सेलेक्शन नहीं हुआ नतीजा खेल गर्त में गया और मध्य प्रदेश क्रिकेट में पिछड़ता रहा, बस जब लग रहा था कि अब मध्य प्रदेश क्रिकेट को कोई नहीं बचा सकता तभी तो एंट्री होती है गौथम शहर के बैटमैन की, चंद्रकांत पंडित टीम शीट उठाते हैं और और उन तमाम नामों पर कट का निशान लगाते हैं जिन्होंने पिछले पाँच सीजन में दस या उससे कम मैच खेले हैं ये बदलाव की पहली बयार थी और पंडित ने बतौर मध्य प्रदेश के कोच के रूप में पहली ही गेंद में छक्का मार दिया था. 

काग़ज़ में सारी रणनीति तैयार कर लेते

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स्पोर्ट्स यारी ने चंद्रकांत पंडित की कोचिंग के बारे में टीम के सलामी बल्लेबाज़ हिमांशु मंत्री से बात की वो बताते हैं, “सर के आने के बाद चींजें पूरी तरह से बदल गई हम बहुत अनुशासित हो गए हमें सही मायनो में अब पता चला कि ये खेल आख़िर क्या है, सर हमारे मैदान में उतरने से पहले ही आधी रणनीति तैयार कर चुके होते हैं.

उन्हें कोई कंप्यूटर लैपटॉप या आधुनिक चीज़ें नहीं चाहिए वो एक काग़ज़ में सारी रणनीति तैयार कर लेते हैं, सुबह पाँच बजे से रात दस बजे तक वो खिलाड़ियों और खेल से ही जुड़े रहते हैं और कभी-कभी तो इससे ज़्यादा देर के लिए भी”

हिमांशु मंत्री का पूरा इंटरव्यू देखने के लिए यहाँ क्लिक करें : ">

सबसे अलग सोचते हैं और वो मैदान पर दिखता भी

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हर कोई जानता है कि चंद्रकांत पंडित की कोचिंग का तरीक़ा अलग है वो सबसे अलग सोचते हैं और वो मैदान पर दिखता भी है, टीम को अपने हिसाब से चुनने के बाद दूसरा काम था टीम के हर खिलाड़ी को उनकी ताक़त के मुताबिक़ जगह देना पसंद के मुताबिक़ नहीं, हिमांशु मंत्री इस सीजन से पहले मध्यक्रम में भी जगह नहीं बना पाए थे, लेकिन ये चंद्रकांत पंडित ही थे जिन्होंने उनकी तकनीक को पहचाना और उन्होंने मंत्री को सलामी बल्लेबाज़ी दी वही हिमांशु मंत्री पंजाब के खिलाफ शुभम के साथ अहम साझेदारी का हिस्सा बने क्वार्टरफाइनल में दमदार पारी खेली.

सेमीफ़ाइनल में बंगाल के खिलाफ शतक जड़ा मैन आफ द मैच बने, यश दुबे की कहानी भी अलग नहीं है एक और मध्यक्रम का बल्लेबाज़ जिसने इस सीजन ओपन किया और फिर फ़ाइनल में उनकी शतकीय पारी क़ौन भूल सकता है.

चंद्रकांत पंडित ने खत्म किया 23 साल का इंतजार 

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आदित्य श्रीवास्तव को इस सीजन कप्तानी सौंपनी हो या फिर गेंदबाज़ी में गौरव यादव और अनुभव अग्रवाल के दम पर जीतना हो जो टीम के पाँचवें या छठे नंबर पर चुने जाने वाले गेंदबाज थे और इन्हें इसलिये चुनना पड़ा क्योंकि आवेश टीम इंडिया के साथ थे, ईश्वर पांडे चोटिल थे, पुनीत दात्ते भी फ़ाइनल से पहले चोटिल हो गए यही हाल कुलदीप सेन का भी था ये सब चंद्रकांत पंडित की ही रणनीतियों का हिस्सा था, जिसने आख़िर में मध्य प्रदेश को रणजी चैंपियन बनाया 

इससे इतर शुरुआत में उनके कई फ़ैसले नतीजों को उनके पक्ष में नहीं मोड़ पा रहे थे इस पर उनके आलोचकों को मौक़ा मिल गया उनकी आलोचना करने का और फिर जमकर आलोचना हुई भी थी, लेकिन चंद्रकांत पंडित ने अपने तरीकों को नहीं बदला, हाँ निरंतर प्रयास से नतीजों को ज़रूर बदल दिया और बना दिया मध्य प्रदेश को चैंपियन.

ये वही मैदान है जहां चंद्रकांत पंडित 23 साल पहले टूटे दिल और सपनों के साथ खुद को सँभालने में नाकाम थे लेकिन दो दशक और तीन साल के इंतज़ार के बाद मैदान वही था, मौक़ा वही था, आँखों में आँसू भी थे, बस ये आसूं ख़ुशी के थे नतीजा बदल गया था 23 साल का इंतज़ार चंद्रकांत पंडित को बतौर कोच चैंपियन बना गया.

 

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